पत्रकारिता मेरा धर्म है
पत्रकारिता मेरा धर्म है प तरफ त्रकारिता ऐसा कटीला पथ है जिसके एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई है। फिर भी इस चुनौती भरे दायित्व के निर्वाह से आत्म संतोष होता है। क्योंकि जनापेक्षाओं की पूर्ति हमे अपने दायित्व निर्वहन का बोध कराती है। आज के दौर में पत्रकारिता की चुनौतियां बढ़ी हैं, पाठकोंकी रुचि में भी परिवर्तन आया है, इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता ने प्रत्यक्षता की भूमिका का निर्धारण निरुपित किया है।
जिसके कारण प्रतिस्पर्धा भी उत्पन्न हुई है। श्रेष्ठ कौन? इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता? या प्रिंट (मुद्रित) पत्रकारिता? ऐसा माना जाता है कि प्रतिस्पर्धा से श्रेष्ठता निकलकर बाहर आती है। किन्तु इसके दुष्प्रभाव से भी इंकार नहीं किया जा सकता। पत्रकारिता के इस घमासान में एक बात आज भी अटल हैं कि पत्रकारिता वह चुनौती है जिस पर वर्ग समाज संपादक और समुदाय के बीच संतुष्टि स्थापित करना पड़ता है। यह कहावत यहां चरितार्थ होती है कि बड़े से बड़ा ठग-बेईमान भी अपना साथी ईमानदार और संस्कारवान ही चाहता है। समाज का हर व्यक्ति पत्रकार से ईमानदारी की अपेक्षा करता है। सामर्थ अनुरूप एक कमलाकर पूरी ईमानदारी से अपने दायित्व का निर्वहन करता है। लेकिन ऐसी दशा में भी पत्रकारिता को सामाजिक सम्मान मिलना मुश्किल हो जाता है।
अपने स्वार्थ के लिए सामान्य व्यक्ति से लेकर राष्ट्र के सर्वोच्च सत्ता सिंहासन में विराजमान सम्मानित राजनेता तक हमे लोकतंत्र चौथा स्तम्भ कहने में चूक नहीं करते। किन्तु यदि कभी हमारी ईमानदार लेखनी की रोशनाई ने उनकी विरदावली में एकाध अक्षर की कमी उन्हें महसूस कराई तो तुरन्त वह कलमकार 'दो कौड़ी का पत्रकार' कहलाने लगता है। यदि आप हमसे ईमानदारी की अपेक्षा करते हैं तो हमारी ईमानदार परिस्थितियों को बेईमानी का चश्मा लगाकर न देंखे। कलम की धार को बाधित करके उसकी दिशा बदलकर संतुष्टि हासिल करने की कोशिश जब नाकाम होती है तब लोग पत्रकारिता और पत्रकार को आरोपित करते हैं यह भावना उचित नहीं। समझने की आवश्यकता है कि धूल आइने में नहीं आइने सामने खड़े चेहरे पर है, ऐसी दशा में आप बार-बार धूल आने पर कपड़ा मारकर साफ चेहरा देखने की कोशिश करेंगे तो कभी सफल नहीं होंगे। क्योंकि धूल चेहरे पर है, आइना में नहीं। स्वच्छ देखने की लालसा है तो चेहरे साफ रखने की आदत डालनी होगी। क्योंकि आइना तो वही प्रतिबिम्ब प्रदर्शित करेगा जो रूप उसके समक्ष मौजूद होगा।
जीवन यापन की मेरी कोई लालसा नहीं, ना ही किसी विवशता ने मुझे पत्रकार बनने का मार्ग दिखाया । विरासत में मिले चिंतन और समाज के प्रति दायित्व का जब अहसास हुआ तो लगा कि बन्धन मक्त, स्वतंत्र जीवन वह दिशा यहां निर्धारित होती है जहां समाज सेवा की परिधि में हम अपने मानवीय मूल्यों को साकार कर पाते हैं। इस कारण ही आज मैं पत्रकार के रूप में आपके सामने हूं। मैं संकल्पित हूं उस निष्कलंक कलम की धारा को निरंतर नियमित प्रवाहित करने के लिए जो समाज के हर व्यक्ति को उम्मीदों, आशाओं पर खरी उतरती हो। उन्हें जरूर कष्ट होगा। जो दूसरों का हक छीनना चाहते हैं, अन्याय, अत्याचार, अनाचार के रास्ते अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहते ऐसे समाज के दुश्मन पंचायत मेल से घृणा करेंगे, उसकी निन्दा बुराई करेंगे। लेकिन इसे हम अपनी उपलब्धि मानते हैं। जय हिन्द