देश से लेकर प्रदेश तक सभी राजनैतिक पार्टियां किसानों की तरक्की की बात करती हैं लेकिन सच्चाई यह है कि पंचायत से लेकर देश की राजधानी तक किसानों का खैर-ख्वाह कोई नहीं। अभी हालही में रीवा जिले के सेमरिया तहसील में एक किसान ने आत्महत्या कर ली। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने घड़ियाली आंसू बहाने भी पहुंच गए।
15 साल तक भाजपा ने प्रदेश में सरकार चलाई। यदि किसानों को सम्पन्न बनाया होता तो किसानों को आत्महत्या करने की जरूरत ही क्यों पड़ती। ये वही शिवराज सिंह चौहान हैं जिन्होंने मदसौर में किसानों की छातियों को गोलियों से छलनी कर दिया। आज सरकार में नहीं है शिवराज सिंह चौहान को किसानों का दुख-दर्द भलीभांति समझ में आ रहा है। रही बात कांग्रेस की तो कांग्रेस भी केन्द्र सरकार के ऊपर यह आरोप लगा रही है कि बाढ़ एवं आपदा के चलते प्रदेश के अंदर किसानों का जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई केन्द्र सरकार नहीं कर रही है। जिसके चलते प्रदेश का किसान हैरान एवं परेशान है। वास्तविकता यह है कि किसान को लेकर न भाजपा न ही कांग्रेस दोनों पार्टियां गंभीर नहीं है। इन पार्टियों को सिर्फ वोटों की फसल काटने से मतलब है। दोनों ही पार्टियां किसानों की कब्र पर राजनीति करती हैं लेकिन किसानों की सुख-सुविधा कैसे बढ़े इस बात को लेकर देश की किसी पार्टी ने गंभीरता पूर्वक कार्य नहीं किया। छोटे किसानों की आए दिन जमीनें बिक रही हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, किसानों के पास खाद और बीज के पैसे तक नहीं रहे। साहकारी प्रथा के तहत किसान खाद एवं बीज के लिए लोन लेता है और जब कर्ज बढ़ जाता है तो किसान या तो किसान आत्महत्या कर लेता है या अपनी जमीन बेच देता है। आजादी के बाद से देश के किसानों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। राजनैतिक पार्टियां सिर्फ किसानों के कर्जे माफ करने का नारा देकर सरकार बनाती हैं और फिर भूल जाती है।